Thursday 25 October 2012

द सेल्फिश जाइंट

विश्व की महान कृतियां :
राक्षस का बगीचा
ऑस्कर वाइल्ड 

(प्रसिद्ध कवि, नाटककार और कहानीकार। यहां 'द सेल्फिश जाइंट" की कथा दे रहे हैं।)




रोज की तरह बच्चे उस खूबसूरत बगीचे के पास पहुंचे और एक-एक करके उसमें घुसते चले गए।। वह बगीचा था ही इतना खूबसूरत। वहां क्या नहीं था! हरी मखमली घास। रंग-बिरंगे सैकड़ों तरह के फूल। जो रंग चाहो, वहां मिल सकता था। भरे-पूरे पेड़। डालियां इतनी नीची कि उस पर झूले डालो और खूब झूलो। उन पेड़ों पर चढऩा भी आसान था। साथ ही थे तरह-तरह के फलों के पेड़, जिन पर मौसम आने पर खूब सारे फल लगते। पेड़ों पर इतने फूल होते कि बगीचा फूलों की महक से खिल उठता। बच्चे भी चहकते हुए जब उस बाग में भागते-फिरते, तो पेड़ों और फूलों के चेहरे भी खिल उठते। हर मौसम समय से आता और बगीचे पर अपना सारा प्यार उड़ेल देता।
वह बगीचा जिस महल जैसे घर में था, उसका मालिक एक राक्षस था। भीमकाय शरीर वाला, डरावना सा चेहरा और सबसे बड़ी बात कड़कती आवाज। वह कई सालों से अपने महल में नहीं रह रहा था। जब वह वर्षों बाद लौटकर अपने महलनुमा घर में आया, तो अपने शानदार बगीचे को देखकर खुश हो गया। पर जैसे ही उसकी नजर वहां  बच्चों पर पड़ी, वह गुर्रा उठा—''कौन हो तुम लोग? बगीचे में आने की हिम्मत कैसे की?"



बच्चों की नजर उस राक्षस पर पड़ी, तो जैसे भूचाल आ गया। कोई डरकर इधर गिरा, तो कोई चिल्लाता हुआ बाहर की ओर भागा। कई तो जैसे जम ही गए।
राक्षस ने बच्चों की तरफ देखकर उन्हें धमकाया—''आज छोड़ देता हूं। अब कभी तुम लोगों को बगीचे के आसपास भी देखा तो, बात बाद में करूंगा, पहले होगी तुम सबकी पिटाई।"
बच्चों को मौका मिला, तो वहां से भाग छूटे। किसकी हिम्मत थी कि दोबारा उस बगीचे की ओर मुड़कर देख भी ले।
उस दिन के बाद कोई बच्चा बगीचे के आसपास भी नहीं फटका। राक्षस अपने अकेलेपन से  खुश था। वह अपने खूबसूरत बगीचे में टहलता। फूलों को सहलाता, पेड़ों के नीचे बैठता और इतराता—'मैं कितने खूबसूरत बगीचे का मालिक हूं।'
उसकी खुशी ज्यादा दिनों तक उसके साथ नहीं रही। पेड़-पौधों के साथ-साथ वहां के मौसम को भी बच्चों की कमी खलने लगी। बच्चों के न आने से मौसम ने भी वहां आना छोड़ दिया। मौसम न आया, तो भला पेड़-पौधे, फल-फूल कैसे देते? वे भी बच्चों की याद में मुरझाने लगे। मुरझाते पेड़-पौधों के पास भला चिडिय़ों का क्या काम? उन्होंने भी उस बगीचे से अपना घर-बार हटा लिया। हरा-भरा बगीचा उजाड़ हो गया।
अपने बगीचे को बरबाद होते देखकर राक्षस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसके बगीचे को किसकी नजर लग गई? न तो वसंत में फूल खिलते, न चिडिय़ों का गाना सुनने को मिलता। शीत ऋतु में बर्फ गिरी तो उसने सारे बगीचे को अपनी चपेट में ले लिया। लगा, जैसे रंग-बिरंगे बगीचे के सारे रंग कोई चुराकर ले गया हो।



पूरा साल बीत गया। अब बगीचे से सभी मौसम ने किनारा कर लिया।  उस बगीचे में सर्दियों का राज ही रहता। सब कुछ बर्फ से ढका रहता। अपने बगीचे की ऐसी हालत देखकर वह पत्थरदिल राक्षस भी जोर-जोर से रो पड़ा।
एक सुबह राक्षस जब सोकर उठा, तो उसके कानों में संगीत के स्वर सुनाई दिए। उसने ध्यान से सुना, तो उसका मुंह खुला का खुला रह गया। यह तो चिडिय़ा के गाने की आवाज थी। उसने परदे के कोने से बाहर झांका।
पता नहीं उसके बगीचे की दीवार में कैसे एक छेद हो गया था। उस छेद से होकर ढेर सारे बच्चे बगीचे में आ गए थे। वे पेड़ों की डालों पर बैठे थे। सारे पेड़ फल-फूल से लद गए थे। सारी बर्फ पता नहीं कहां उडऩछू हो गई थी और मखमली घास पर बच्चे बैठकर खेल रहे थे।
तभी राक्षस की नजर बगीचे के एक कोने पर पड़ी। वहां कुछ नहीं बदला था। अभी भी पेड़ों पर बर्फ जमी थी। वहां उसकी नजर एक छोटे से बच्चे पर टिक गई। वह एक पेड़ पर चढऩे की कोशिश कर रहा था, पर चढ़ नहीं पा रहा था।
पता नहीं क्यों, राक्षस ने दरवाजा खोला और उसके कदम उस बच्चे की तरफ बढ़ गए। उसे बाहर आते देख बाकी बच्चे भाग खड़े हुए और छिपकर राक्षस की ओर देखने लगे। बच्चे क्या भागे, उस बाग से सारी रौनक फिर गायब हो गई और पूरा बगीचा पहले जैसा सफेद हो गया।
राक्षस उस बच्चे के पास पहुंचा और उसे अपनी बांहों में उठा लिया। बच्चा कुछ समझ पाता तब तक राक्षस ने उसे प्यार से एक पेड़ की डाल पर बैठा दिया। खुद को पेड़ पर पाकर बच्चा किलक उठा। उसने अपनी बाहें फैलाईं और हंसते हुए राक्षस को चुम्मा दे दिया।



बच्चे द्वारा राक्षस को प्यार करते ही चमत्कार हो गया। पूरा बगीचा फिर से फल-फूल से भर गया। सारे पेड़ खुशी से झूमने लगे और चिडिय़ां फुदक फुदककर गाने लगीं। राक्षस के बदले रूप को देखकर बच्चे फिर से बगीचे में आकर खेलने लगे। राक्षस ने प्यार से कहा—''बच्चो, आज से यह बगीचा तुम्हारा है।"
राक्षस ने तुरंत बगीचे की दीवार तोड़ दी। अब बगीचा सबके लिए खुला था।
शाम को खेल खत्म होने पर बच्चे राक्षस से विदा लेने आए, तो उसकी नजर उस छोटे से बच्चे को ढूंढऩे लगी, पर वह कहीं नजर नहीं आया। उसने पूछा—''वह छोटा सा बच्चा कहां है?"
''हमें नहीं पता, हम तो उसे जानते तक नहीं।"—बच्चों ने एक साथ जवाब दिया, तो राक्षस का चेहरा बुझ सा गया।
थोड़ी देर बाद राक्षस ने बच्चों से प्रार्थना सी की—''अगर कहीं तुम लोगों को वह बच्चा दिखे, तो उससे कहना, वह यहां खेलने आ जाया करे।"
अब तो रोज जैसे ही स्कूल की छुट्टी होती, बच्चे बगीचे में आ धमकते। राक्षस भी उनके साथ खूब भागा-दौड़ी करता। पर उसकी नजरें उस छोटे से बच्चे को ढूंढ़ती रहतीं, पर वह कहीं न दिखता।
कई साल बीत गए। अब राक्षस बूढ़ा हो चला था। उससे खेला नहीं जाता था। बच्चे बड़े हो गए थे और अब उनके बच्चे वहां खेलने आते थे। राक्षस उनके दादा जी की तरह एक आरामकुर्सी पर बैठकर उन्हें खेलते देखता रहता  पर वह आज भी उस छोटे बच्चे को भूल न पाया था।
एक सुबह राक्षस सोकर उठा। हर रोज की तरह उसने उठते ही खिड़की से बाहर बगीचेे को निहारा।  उसे एक झटका सा लगा, फिर उसके चेहरे पर खुशियां छा गईं। बगीचे के कोने में हरसिंगार का पेड़ सफेद फूलों से पटा पड़ा था। फूल उससे झर रहे थे। और उस पेड़ के नीचे वही छोटा बच्चा खड़ा था, जिसे वह वर्षों बाद भी भूल न पाया था।
राक्षस में न जाने कहां से ताकत आ गई। वह बच्चे की तरह दौड़ता हुआ सीढिय़ों से उतरा और बगीचे की ओर भागा। जब वह बच्चे के पास पहुंचा, तो ठिठक गया। उस बच्चे की हथेलियों और पैरों पर नाखून गड़ाने के निशान थे। यह देख राक्षस आग-बबूला हो गया। वह चीख पड़ा—''किसने तुम्हें चोट पहुंचाई।  मैं उसे मार डालूंगा।"
बच्चा धीरे से उसके पास आया। उसे शांत करते हुए मुसकराकर बोला—''किसी ने मुझे चोट नहीं पहुंचाई। जो मुझे प्यार करते हैं, उन्हें चोट लगती है, तो मेरे शरीर पर भी निशान पड़ जाते हैं।"
''तुम कौन हो? कहां चले गए थे। अब क्यों लौटे हो?"—राक्षस की उलझन बढऩे लगी थी।
बच्चा  हंसते हुए बोला—''एक बार तुमने मुझे अपने बगीचे में खेलने दिया था। अब क्या तुम मेरे बगीचे में चलोगे?"
''तुम्हारा बगीचा! वह कौन सा है?"—राक्षस आश्चर्य से बोला।
बालक ने प्यार से राक्षस का हाथ थाम लिया और बोला—''मैं स्वर्ग से आया हूं। तुम अच्छे हो, इसलिए अब तुम मेरे साथ रहोगे।"
यह सुनकर राक्षस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।
अगले दिन जब बच्चे बगीचे में पहुंचे, तो राक्षस पेड़ के नीचे मरा पड़ा था। उसके शरीर को हरसिंगार के फूलों ने ढक लिया था। वह  एक नई यात्रा पर चल पड़ा था, अपने नन्हे साथी के साथ।
                                                                                                                  (प्रस्तुत : अनिल जायसवाल)

 सभी  चित्र  सौजन्य  गूगल , किसी को आपत्ति हो  तो इन्हें तत्काल  हटा दिया जायेगा . इनका ब्याव्सयिक प्रयोग नहीं हो रहा है . केवल बच्चों का कहानी से जुराव को रेखांकित करने के लिए इनका उपयोग हो रहा है।चित्रकारों का धन्यवाद  

3 comments:

  1. अनिल जी, बहुत ही सराहनीय कार्य है आपका। इसके लिए मुझ नाचीज की ओर से बधाई स्‍वीकारें।

    पर ब्‍लॉग में फालोअर विजेट नही है, इसलिए आपके ब्‍लॉग पर आगे से पहुंचने में दिक्‍कत होगी। कृपया निम्‍नांकित लिंक वाली पोस्‍ट को पढकर ब्‍लॉग में जरूरी चीजें भी जोड़ लें- ‘ब्‍लॉग के लिए जरूरी चीजें’

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  2. सराहनीय कार्य। बधाई।

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  3. अनिल जी, अपडेट देखकर अच्‍छा लगा। वैसे अगर फालोअर विजेट नीचे से हटाकर साइड में लगा लें, तो ज्‍यादा अच्‍छा रहेगा। क्‍योंकि साइड में वह तुरंत दिख जाता है और नीचे तक पहुंचने में समय लगता है।

    कृपया ये वर्ड वेरीफिकेशन भी हटा दीजिए, इरीटेट करता है पाठकों को। इसका तरीका भी ऊपर बताई गई पोस्‍ट में दिया हुआ है।

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