Tuesday 30 October 2012

द एडवेंचर ऑफ़ थ्री स्टुडेंट्स

                                                              शर्लाक होम्स के कारनामे :
                द एडवेंचर ऑफ़ थ्री स्टुडेंट्स (THE ADVENTURE OF THE THREE STUDENTS)



द एडवेंचर ऑफ़ थ्री स्टुडेंट्स


—सर आर्थर कानन डायल






एक बार शर्लाक होम्स  और डा. वाटसन से मिलने डा. हिल्टन सोएमस आए। वह सेंट ल्यूक्स कालेज में प्रोफेसर थे। डा. सोएमस लंबे-दुबले और भावुक किस्म के आदमी थे। वह आमतौर पर बहुत शांत रहते थे, पर उस दिन उनकी बेचैनी को कोई भी महसूस कर सकता था।
डा. सोएमस बेचनी से पहलू बदलते हुए बोले—''मेरे साथ एक बहुत ही अजीब घटना मेरे विश्वविद्यालय परिसर के घर में घटी है। यह मेरा भाग्य है कि आप इन दिनो यहीं ठहरे हुए हैं।''
''माफ कीजिए।'' शर्लाक होम्स बोले—''मैं इन दिनों बहुत व्यस्त हूं। अच्छा होगा यदि आप पुलिस से संपर्क करें।''
''मैं ऐसा ही करता पर ऐसा करने पर कालेज की इज्जत पर आंच आएगी। और किसी दूसरे की गलती सजा निर्दोष छात्रों क्यों मिले।
अब तक शर्लाक होम्स उखड़े हुए थे। परंतु छात्रों केविषय में जानकर वह थोड़े सहज हुए। वह प्रोफेसर के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गए। उनका संकेत पाकर प्रोफेसर ने आगे कहना शुरू किया—''कल हमारे कालेज में छात्रवृत्ति की परीक्षा होने वाली है। उसका प्रश्नपत्र मैंने ही बनाया है। आज करीब तीन बजे छपार्इ वाला प्रश्नपत्र का नमूना मुझे देखने के लिए दे गया। प्रश्नपत्र तीन पन्नों में था। मैं उन्हें पढऩे लगा। इस बीच चाय का समय हुआ तो मैंने प्रश्न पत्र टेबल पर रख दिया। दरवाजे पर ताला लगाकर मैं मित्र के पास चाय पीने चला गया।
''जब मैं लौटा तो यह देखकर सन्न रह गया कि दरवाजे पर चाबी लगी हुई थी। दरवाजे की एक चाबी मेरे विश्वस्त नौकर बैनिस्टर के पास रहती थी। इसका मतलब था कि मेरे न रहने पर वह मेरे कमरे में गया था। यह उसकी लापरवाही थी कि उसने चाबी दरवाजे पर लगी छोड़ दी थी।
''मैं जल्दी से अंदर गया। मैं यह देखकर हैरान रह गया कि  प्रश्न पत्रों को किसी ने छेड़ा था। एक पन्ना पर्श पर गिरा था। दूसरा खिड़की पाल वाली शीशे की मेज पर था और तीसरा वहीं पर था जहां मैंने उन्हें छोड़ा था।''




''पहले मुझे लगा यह मेरे नौकर का काम है। मैंने उससे बात की। वह तो मेरी डांट से ऐसा पस्त हुआ कि खिड़की के पास वाली कुर्सी पर ही बैठ गया। मेरे घर के पास ही तीन विद्यार्थी रहते हैं। उनमें से एक दौलत रास मेरे पास आया था, पर चूकि प्रश्न पत्र गोलाई में बंधे हुए थे, अत: वह जान ही नहीं सकता था। इसके अलावा कोई मेरे पास नहीं आया था। मैंने कमरे की जांच की। कमरे में घुसने वाले ने कुछ निशान छोड़े थे—जैसे पैंसिल की छीलन। मैं चाहता तो पुलिस बुला सकता था। पर इससे परीक्षा स्थगित हो जाती। कितने ही बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता। अगर आप कल की परीक्षा से पहले उस बदमाश को पकड़ लें तो बड़ी मेहरबानी होगा। अन्यथा मुझे परीक्षा स्थगित करवानी पड़ेगी।''
''मुझे जांचकर खुशी होगी। चलिए आपके घर चलते हैं।''—कहते हुए शर्लाक होम्स खड़े हो गए।
सभी प्रोफेसर के घर पहुंचे। कालेज परिसर में ही घर बने थे। साथ ही छात्रावास भी था। शर्लाक ने बाहर से खिड़की द्वारा घर में झांकने की कोशिश की। शर्लाक की लंबाई अच्छी थी, पर उन्हें भी झांकने के लिए काफी उचकना पड़ा।
सभी घर के अंदर पहुंचे। घर पुराने ढंग का बना हुआ था। दरवाजे के अलावा घर में घुसने का कोई रास्ता नहीं था। शर्लाक बैठक के बनी खिड़की के पास पहुंचे। वहीं शीशे वाली टेबल रखी थी। पास ही कुर्सी भी पड़ी हुई थी। शर्लाक ने सब कुछ ध्यान से देखा। फिर प्रोफेसर से पूछ बैठे—''आपका नौकर किस कुर्सी पर बैठा था?''
'इसी मेज के पास वाली कुर्सी पर।''
''चलिए, पहले मेज को देखते हैं। शर्लाक ने मेज को ध्यान से देखा। मेज पर खरोंच के निशान थे। वहां कुछ काली मिट्टी पड़ी हुई थी। साथ ही जमी हुई मिट्टी का एक तिकोना टुकड़ा भी था। उस मिट्टी में बुरादा मिला था। कुछ सोचकर शर्लाक ने कहा—''जो हुआ, साफ दिखाई दे रहा है। अजनबी को पता चल गया कि कमरे में प्रश्न पत्र है। उसे दरवाजे पर चाबी भी लगी मिली। वह अंदर आया। टेबल से एक-एक कर प्रश्न पत्र उठाकर वह नकल करने लगा। इसी बीच उसकी पेंसिल की नोंक टूटी। उसने फिर नोंक बनाई, इसीलिए पेंसिल की छीलन मेज के पास पड़ी है। वह खिड़की के पास शीशे वाली टेबल पर इसलिए काम कर रहा था कि वह बाहर आप पर नजर रख सके कि कहीं आप लौट तो नहीं रहे। उसका दुर्भाग्य कि आप दूसरे रास्ते से आ गए। फिर...।'' कहते हुए शर्लाक रुक गए। फिर बोले—''बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। इसका मतलब जब आप अंदर आए तो वह यहां था। पर था कहां?''
 कहते हुए शर्लाक की नजर पूरे बैठक में घूमी। उन्हें एक और दरवाजा नजर आया। उन्होंने प्रोफेसर की ओर देखा तो वह बोले—''यह मेरे सोने के कमरे का दरवाजा है।''
''चलिए देखते हैं।''—कहते हुए शर्लाक सोने के कमरे में गया। वहां दरवाजे के स्थान को ध्यान से देखा। वहां पर भी उसे मिट्टी का तिकोना टुकड़ा मिला। शर्लाक ने उसे भी संभालकर रख लिया। अब उसके पास वैसे दो टुकड़े थे। फिर वह बोले—''इससे सिद्ध होता है कि वह अजनबी इस कमरे में भी आया था। आपका नौकर उस अजनबी अथवा चोर जो भी है, उसे जानता है। आप जरा उसे बुलवाइए।''
बैनिस्टर आया। वह पचास साल का बूढ़ा था। वह अब भी घबराया हुआ था। शर्लाक ने उसके आते ही पूछा—''एक बात मेरी समझ में नहीं आई। जब प्रोफेसर ने आप से पूछताछ की तो पस्त होकर आप कमरे में और किसी कुर्सी पर क्यों नहीं बैठे। उसी कुर्सी पर क्यों बैठे जो इस खिड़की के नजदीक और दरवाजे से इतनी दूर इस शीशे वाली टेबल के पास है?''
''मुझे नहीं पता, मैं तो बिना सोच-समझे  उस कुर्सी पर बैठ गया था।''—नौकर ने जवाब दिया।
आप जानते हैं, पर हमें बता नहीं रहे। पर कोई बात नहीं। चलिए प्रोफेसर साहब, अब आपके पड़ोसी, तीनों विद्यार्थियों से मिल लें। शायद कुछ पता चले।
सबसे पहले वे गिलक्रिस्ट नामक विद्यार्थी से मिले। वह ताड़ की तरह लंबा और लापरवाह युवक था। पढ़ाई से ज्यादा उसकी खेल में रुचि थी। लंबी कूद में वह कालेज का चैंपियन था।
दूसरा लड़का था दौलत रास। वह पढऩे में तेज था। वह सबसे बड़ी गर्मजोशी से मिला। उसकी लंबाई ज्यादा नहीं थी। फिर वह तीसरे विद्यार्थी के पास पहुंचे। वह भी सामान्य कद का विद्यार्थी था। आवाज देने पर भी उसने सबसे मिलने से इनकार कर दिया। सबको बहुत बुरा लगा। साथ ही यह सुनकर और भी उसपर सबका संदेह गहराया कि आज दोपहर के बाद से वह किसी से मिला तक नहीं था।
''अच्छा प्रोफेसर साहब, अब हम चलते हैं। कल सुबह परीक्षा आरंभ होने से पहसे अपराधी आपके पास खड़ा होगा।''—कहते हुए शर्लाक होम्स और डा. वाटसन प्रोफेसर को परेशानी की हालत में छोड़कर ही लौट गए।
अगले दिन सुबह डा. वाटसन ने शर्लाक होम्स से कहा—'' प्रोफेसर के पास जाकर उसे कहेंगे क्या? कौन है अपराधी?''
मैं उसे पहचान चुका हूं। यह देखो। कहते हुए शर्लाक ने अपनी हथेली आगे की। उस पर वैसा ही तिकोना टुकड़ा था जैसे दो टुकड़े शर्लाक ने प्रोफेसर के घर पर बरामद किए थे।
यह कहां से मिला?—डा. वाटसन ने पूछा।
''मैं आज सुबह से इस काम में लगा हूं। चलो, बाकी बातें प्रोफेसर के यहां बताऊंगा।''
दोनों तैयार होकर प्रोफेसर के पास पहुंचे। वह परेशान होकर टहल रहे थे। उन्हें दिलासा देकर शर्लाक ने पहले बैनिस्टर को बुलाया। उसके आते ही कहा—''मैं जानता हूं, जो भी अपराधी है। उसे तुम जानते हो। पर मैं इसे सिद्ध नहीं कर सकता। ऐसा करो कि जाकर गिल्क्रिस्ट को बुला लाओ।''
 बैनिस्टर गया और जब वह लौटा तो उसके साथ गिलक्रिस्ट था। ''यहां हम पांच लोग हैं। यहां जो बातें होगी, हमारे अलावा कोई नहीं सुन सकेगा। तुम तो अच्छे लड़के हो, पर तुमने ऐसा गलत काम क्यों किया?'' —कहते हुए शर्लाक ने उस पर नजर गड़ा दी।
गिलक्रिस्ट ने घबराकर बैनिस्टर की तरफ देखा। बैनिस्टर मिमियाया—''नहीं, मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया।''
''गिलक्रिस्ट, तुमने ऐसा क्यों किया?''—प्रोफेसर की हैरानी की कोई सीमा नहीं थी।
''इसने कुछ सोचकर ऐसा नहीं किया था। मौका हाथ लगा तो यह अपराध कर बैठा। मैं सारी कहानी सुनाता हूं। जहां मैं कुछ छोड़ू, तुम बता देना। ''—शर्लाक ने कहा।
फिर उन्होंने केस पर बोलना शुरू किया—''घर में प्रश्न पत्र आए हैं, यह प्रोफेसर के अलावा छपाई वाले को पता था। पर वह इसलिए अपराधी नहीं हो सकता ता कि वह तो नकल का काम अपने घर में भी कर सकता था। बैनिस्टर को भी पता नहीं था, अत: वह ऐसा कर नहीं सकता था। ले देकर इतनी जल्दी इसके विषय में पास में ही रहने वाले तीनों विद्यार्थी ही जान सकते थे। दौलत रास घर पर आया था पर बंडल देखकर उसे भला कुछ क्या पता चलता। अत: मैंने सुबूतों पर ध्यान दिया। कोई बाहर से झांककर अंदर देख सकता था। पर इसके लिए लंबा होना जरूरी था। तीनों विद्यार्थियों में सबसे लंबा गिलकिस्ट ही है। घर में मिट्टी के जो टुकड़े मिले, वह खेल वाले जूतों में लगीं कीलों से ही निकल सकती थी। यहां उपस्थित लोगों में गिलक्रिस्ट ही खिलाड़ी है। बाहर खिड़की के पास, घर के अंदर शीशे वाली टेबल के पास ,उसके पास की कुर्सी पर तथा सोने वाले कमरे में काली मिट्टी और लकड़ी के बुरादे मिले थे। मैं आज सुबह कालेज के खेल के मैदान में गया था। वहां की मिट्टी काली है। वहां पर लकड़ी के बुरादे भी मिले जिसे खिलाड़ी फिसलने से बचने के लिए मिट्टी पर डालते हैं।
फिर मैं कालेज के पास वाली कापी-किताब बेचने वाली दुकान पर गया। वहां पता चला कि कल रात एक लंबा लड़का पेंसिल खरीदकर ले गया था।
''हुआ यह था कि गिलक्रिस्ट ने खेल के मैदान से लौटते समय खिड़की से प्रश्नपत्र देख लिए. वह दरवाजे पर आया तो उसके भाग्य से दरवाजे पर बैनिस्टर की चाबी लटक रही थी। वह कमरे में आया। जूते शीशे वाली मेज पर रखकर एक-एक कर प्रश्नपत्रों की नकल उतारने लगा। वह खिड़की के पास यह देखने के लिए खड़ा था कि कहीं आप लौट तो नहीं रहे। पर आप दूसरे रास्ते से लौट आए। बचने के लिए वह आपके सोने वाले कमरे में छिप गया। जूते को खींचने से मेज पर रगड़ लगी। मिट्टी का टुकड़ा निकलकर गिरा। ऐसा ही सोने वाले कमरे में भी हुआ।
''आप नौकर को बुलाया डांटने लगे। तभी नौकर की नजर कुर्सी पर पड़ी किसी चीज पर पड़ी।''
''मेरे दस्ताने कुर्सी पर छूट गए थे।'' गिलकिस्ट ने आगे बताया—''बैनिस्टर ने तुरंत दस्तानों को पहचान लिया। वह जानता था कि उस पर परोफेसर की नजर पड़ते ही मैं पकड़ा जाऊंगा। अत: वह तबीयत खराब होने का बहाना कर दस्तानों पर ही बैठ गया। जब प्रोफेसर साहब आपको बुलाने गए तब इन्होंने मुझे बाहर जाने दिया।
''मुझे लगा कि मैंने गलत काम किया था। बैनिस्टर ने मुझे पिता की तरह समझाया। तब मैंने निश्चय कर लिया कि मैं परीक्षा में नहीं बैठूंगा। यह देखिए, इस सूचना को आप तक पहुंचाने के लिए पत्र लिख चुका था।''  कहते हुए गिलक्रिस्ट ने पत्र प्रोफेसर को दे दिया।
बैनिस्टर, तुमने इसका साथ क्यों दिया? प्रोफेसर ने आश्चर्य से पूछा।


बैनिस्टर ने धीरे से जवाब दिया—''आपके पास काम करने से पहले मैं गिलक्रिस्ट के घर काम करता था। इसके पिता मेरी बहुत ख्याल रखते थे। पर दुर्भाग्य से उनकी मृत्यु हो गई। मैं आपके पास चला आया। कल जब मैंने दस्ताने देखे तो मैं समझ गया था कि कमरे में कौन आया था। मैं इस बच्चे का भविष्य बर्बाद नहीं करना चाहता था। इसीलिए मैं इसे बचकर जाने दिया। मेरे मन में और कोई बात नहीं थी।''
''क्यों प्रोफेसर आपकी मुश्किल तो हल हो गई। कालेज का नाम भी बदनाम नहीं हुआ। इस बच्चे को माफ कर दें। इसने प्रश्नपत्र देखा है, पर यह परीक्षा में नहीं बैठ रहा है। अत: आज परीक्षा हो सकती है। हां, आप जरूर बदनाम होने वाले हैं क्योंकि आपने अब तक हमें नास्ता भी नहीं करवाया है।''—हंसते हुए शर्लाक होम्स ने कहा।
''मैं अभी आप सबके लिए नाश्ता लाता हूं।''—कहते हुए बैनिस्टर बाहर भागा। यह देखकर सभी हंस पड़े।

(प्रस्तुत : अनिल जायसवाल)

Thursday 25 October 2012

द सेल्फिश जाइंट

विश्व की महान कृतियां :
राक्षस का बगीचा
ऑस्कर वाइल्ड 

(प्रसिद्ध कवि, नाटककार और कहानीकार। यहां 'द सेल्फिश जाइंट" की कथा दे रहे हैं।)




रोज की तरह बच्चे उस खूबसूरत बगीचे के पास पहुंचे और एक-एक करके उसमें घुसते चले गए।। वह बगीचा था ही इतना खूबसूरत। वहां क्या नहीं था! हरी मखमली घास। रंग-बिरंगे सैकड़ों तरह के फूल। जो रंग चाहो, वहां मिल सकता था। भरे-पूरे पेड़। डालियां इतनी नीची कि उस पर झूले डालो और खूब झूलो। उन पेड़ों पर चढऩा भी आसान था। साथ ही थे तरह-तरह के फलों के पेड़, जिन पर मौसम आने पर खूब सारे फल लगते। पेड़ों पर इतने फूल होते कि बगीचा फूलों की महक से खिल उठता। बच्चे भी चहकते हुए जब उस बाग में भागते-फिरते, तो पेड़ों और फूलों के चेहरे भी खिल उठते। हर मौसम समय से आता और बगीचे पर अपना सारा प्यार उड़ेल देता।
वह बगीचा जिस महल जैसे घर में था, उसका मालिक एक राक्षस था। भीमकाय शरीर वाला, डरावना सा चेहरा और सबसे बड़ी बात कड़कती आवाज। वह कई सालों से अपने महल में नहीं रह रहा था। जब वह वर्षों बाद लौटकर अपने महलनुमा घर में आया, तो अपने शानदार बगीचे को देखकर खुश हो गया। पर जैसे ही उसकी नजर वहां  बच्चों पर पड़ी, वह गुर्रा उठा—''कौन हो तुम लोग? बगीचे में आने की हिम्मत कैसे की?"



बच्चों की नजर उस राक्षस पर पड़ी, तो जैसे भूचाल आ गया। कोई डरकर इधर गिरा, तो कोई चिल्लाता हुआ बाहर की ओर भागा। कई तो जैसे जम ही गए।
राक्षस ने बच्चों की तरफ देखकर उन्हें धमकाया—''आज छोड़ देता हूं। अब कभी तुम लोगों को बगीचे के आसपास भी देखा तो, बात बाद में करूंगा, पहले होगी तुम सबकी पिटाई।"
बच्चों को मौका मिला, तो वहां से भाग छूटे। किसकी हिम्मत थी कि दोबारा उस बगीचे की ओर मुड़कर देख भी ले।
उस दिन के बाद कोई बच्चा बगीचे के आसपास भी नहीं फटका। राक्षस अपने अकेलेपन से  खुश था। वह अपने खूबसूरत बगीचे में टहलता। फूलों को सहलाता, पेड़ों के नीचे बैठता और इतराता—'मैं कितने खूबसूरत बगीचे का मालिक हूं।'
उसकी खुशी ज्यादा दिनों तक उसके साथ नहीं रही। पेड़-पौधों के साथ-साथ वहां के मौसम को भी बच्चों की कमी खलने लगी। बच्चों के न आने से मौसम ने भी वहां आना छोड़ दिया। मौसम न आया, तो भला पेड़-पौधे, फल-फूल कैसे देते? वे भी बच्चों की याद में मुरझाने लगे। मुरझाते पेड़-पौधों के पास भला चिडिय़ों का क्या काम? उन्होंने भी उस बगीचे से अपना घर-बार हटा लिया। हरा-भरा बगीचा उजाड़ हो गया।
अपने बगीचे को बरबाद होते देखकर राक्षस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसके बगीचे को किसकी नजर लग गई? न तो वसंत में फूल खिलते, न चिडिय़ों का गाना सुनने को मिलता। शीत ऋतु में बर्फ गिरी तो उसने सारे बगीचे को अपनी चपेट में ले लिया। लगा, जैसे रंग-बिरंगे बगीचे के सारे रंग कोई चुराकर ले गया हो।



पूरा साल बीत गया। अब बगीचे से सभी मौसम ने किनारा कर लिया।  उस बगीचे में सर्दियों का राज ही रहता। सब कुछ बर्फ से ढका रहता। अपने बगीचे की ऐसी हालत देखकर वह पत्थरदिल राक्षस भी जोर-जोर से रो पड़ा।
एक सुबह राक्षस जब सोकर उठा, तो उसके कानों में संगीत के स्वर सुनाई दिए। उसने ध्यान से सुना, तो उसका मुंह खुला का खुला रह गया। यह तो चिडिय़ा के गाने की आवाज थी। उसने परदे के कोने से बाहर झांका।
पता नहीं उसके बगीचे की दीवार में कैसे एक छेद हो गया था। उस छेद से होकर ढेर सारे बच्चे बगीचे में आ गए थे। वे पेड़ों की डालों पर बैठे थे। सारे पेड़ फल-फूल से लद गए थे। सारी बर्फ पता नहीं कहां उडऩछू हो गई थी और मखमली घास पर बच्चे बैठकर खेल रहे थे।
तभी राक्षस की नजर बगीचे के एक कोने पर पड़ी। वहां कुछ नहीं बदला था। अभी भी पेड़ों पर बर्फ जमी थी। वहां उसकी नजर एक छोटे से बच्चे पर टिक गई। वह एक पेड़ पर चढऩे की कोशिश कर रहा था, पर चढ़ नहीं पा रहा था।
पता नहीं क्यों, राक्षस ने दरवाजा खोला और उसके कदम उस बच्चे की तरफ बढ़ गए। उसे बाहर आते देख बाकी बच्चे भाग खड़े हुए और छिपकर राक्षस की ओर देखने लगे। बच्चे क्या भागे, उस बाग से सारी रौनक फिर गायब हो गई और पूरा बगीचा पहले जैसा सफेद हो गया।
राक्षस उस बच्चे के पास पहुंचा और उसे अपनी बांहों में उठा लिया। बच्चा कुछ समझ पाता तब तक राक्षस ने उसे प्यार से एक पेड़ की डाल पर बैठा दिया। खुद को पेड़ पर पाकर बच्चा किलक उठा। उसने अपनी बाहें फैलाईं और हंसते हुए राक्षस को चुम्मा दे दिया।



बच्चे द्वारा राक्षस को प्यार करते ही चमत्कार हो गया। पूरा बगीचा फिर से फल-फूल से भर गया। सारे पेड़ खुशी से झूमने लगे और चिडिय़ां फुदक फुदककर गाने लगीं। राक्षस के बदले रूप को देखकर बच्चे फिर से बगीचे में आकर खेलने लगे। राक्षस ने प्यार से कहा—''बच्चो, आज से यह बगीचा तुम्हारा है।"
राक्षस ने तुरंत बगीचे की दीवार तोड़ दी। अब बगीचा सबके लिए खुला था।
शाम को खेल खत्म होने पर बच्चे राक्षस से विदा लेने आए, तो उसकी नजर उस छोटे से बच्चे को ढूंढऩे लगी, पर वह कहीं नजर नहीं आया। उसने पूछा—''वह छोटा सा बच्चा कहां है?"
''हमें नहीं पता, हम तो उसे जानते तक नहीं।"—बच्चों ने एक साथ जवाब दिया, तो राक्षस का चेहरा बुझ सा गया।
थोड़ी देर बाद राक्षस ने बच्चों से प्रार्थना सी की—''अगर कहीं तुम लोगों को वह बच्चा दिखे, तो उससे कहना, वह यहां खेलने आ जाया करे।"
अब तो रोज जैसे ही स्कूल की छुट्टी होती, बच्चे बगीचे में आ धमकते। राक्षस भी उनके साथ खूब भागा-दौड़ी करता। पर उसकी नजरें उस छोटे से बच्चे को ढूंढ़ती रहतीं, पर वह कहीं न दिखता।
कई साल बीत गए। अब राक्षस बूढ़ा हो चला था। उससे खेला नहीं जाता था। बच्चे बड़े हो गए थे और अब उनके बच्चे वहां खेलने आते थे। राक्षस उनके दादा जी की तरह एक आरामकुर्सी पर बैठकर उन्हें खेलते देखता रहता  पर वह आज भी उस छोटे बच्चे को भूल न पाया था।
एक सुबह राक्षस सोकर उठा। हर रोज की तरह उसने उठते ही खिड़की से बाहर बगीचेे को निहारा।  उसे एक झटका सा लगा, फिर उसके चेहरे पर खुशियां छा गईं। बगीचे के कोने में हरसिंगार का पेड़ सफेद फूलों से पटा पड़ा था। फूल उससे झर रहे थे। और उस पेड़ के नीचे वही छोटा बच्चा खड़ा था, जिसे वह वर्षों बाद भी भूल न पाया था।
राक्षस में न जाने कहां से ताकत आ गई। वह बच्चे की तरह दौड़ता हुआ सीढिय़ों से उतरा और बगीचे की ओर भागा। जब वह बच्चे के पास पहुंचा, तो ठिठक गया। उस बच्चे की हथेलियों और पैरों पर नाखून गड़ाने के निशान थे। यह देख राक्षस आग-बबूला हो गया। वह चीख पड़ा—''किसने तुम्हें चोट पहुंचाई।  मैं उसे मार डालूंगा।"
बच्चा धीरे से उसके पास आया। उसे शांत करते हुए मुसकराकर बोला—''किसी ने मुझे चोट नहीं पहुंचाई। जो मुझे प्यार करते हैं, उन्हें चोट लगती है, तो मेरे शरीर पर भी निशान पड़ जाते हैं।"
''तुम कौन हो? कहां चले गए थे। अब क्यों लौटे हो?"—राक्षस की उलझन बढऩे लगी थी।
बच्चा  हंसते हुए बोला—''एक बार तुमने मुझे अपने बगीचे में खेलने दिया था। अब क्या तुम मेरे बगीचे में चलोगे?"
''तुम्हारा बगीचा! वह कौन सा है?"—राक्षस आश्चर्य से बोला।
बालक ने प्यार से राक्षस का हाथ थाम लिया और बोला—''मैं स्वर्ग से आया हूं। तुम अच्छे हो, इसलिए अब तुम मेरे साथ रहोगे।"
यह सुनकर राक्षस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।
अगले दिन जब बच्चे बगीचे में पहुंचे, तो राक्षस पेड़ के नीचे मरा पड़ा था। उसके शरीर को हरसिंगार के फूलों ने ढक लिया था। वह  एक नई यात्रा पर चल पड़ा था, अपने नन्हे साथी के साथ।
                                                                                                                  (प्रस्तुत : अनिल जायसवाल)

 सभी  चित्र  सौजन्य  गूगल , किसी को आपत्ति हो  तो इन्हें तत्काल  हटा दिया जायेगा . इनका ब्याव्सयिक प्रयोग नहीं हो रहा है . केवल बच्चों का कहानी से जुराव को रेखांकित करने के लिए इनका उपयोग हो रहा है।चित्रकारों का धन्यवाद  

Friday 19 October 2012

विश्व की महान कृतियां प्रेमचंद की कहानी

विश्व की महान कृतियां : हिन्दी
कुत्ते की कहानी

— प्रेमचंद


बालको! तुमने राजाओं और वीरों की कहानियां बहुत सुनी होंगी, लेकिन किसी कुत्ते की जीवन-कथा शायद ही सुनी हो। कुत्तों के जीवन में एसी बात ही कौन-सी होती है जो सुनाई जा सके। न वह देवों से लड़ता है, न परियों के देश जाता है, न बड़ी-बड़ी लड़ाईयां जीतता है। किंतु मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि मेरे जीवन में एेसी कितनी ही बातें हुई हैं जो बड़े-बड़े आदमियों के जीवन में भी नहीं हुई होंगी।
जब मेरा जन्म हुआ और आंखे खुलीं, तो मैंने देखा कि एक भाड़ की राख में अपनी माता की छाती से चिपटा पड़ा हूं। हम चार भाई थे। तीन लाल थे पर मैं काला था। उस पर सबसे छोटा और  सबसे कमजोर।
माता जी हम लोगों के पास कम ही रहती थीं। वह रात-रात भर जागकर गांव की रक्षा करती थीं। पर इतना सब करने पड़ भी कोई उन्हें खाने को नहीं देता था। हम लोगों की चिंता उन्हें परेशान कर देती थीं। बेचारी को जब भूख सताती, तो चोरी से लोगों के घरों में घुस जातीं। उन्हें खाने की जो चीज मिल जाती, लेकर निकल भागती।
एक दिन बड़ी ठंड पड़ी। बादल छा गए और हवा चलने लगी। हमारे दो भाई ठंड न सह सके और मर गए। हम दो भाई रह गए। हमारी मां बहुत रोईं ।
जब हम दो भाई बड़े हुए, तो लड़कों ने हमारे साथ खेलना शुरू किया। मैं बहुत खूबसूरत था। मुझे एक पंडित का लड़का पकड़कर ले गया। जबकि मेरे भाई को एक डफाली का लड़का पकड़कर ले गया। मैं पंडित जी के घर पलने लगा और मेरा भाई डफाली के घर। उसे लोग जकिया कहने लगे, तो काले रंग के कारण मेरा नाम पड़ा कल्लू।
जाड़े का मौसम था। सब लड़के धूप में जमा हो जाते, तो हमें गोद में ले लेते और चूमते। कोई कहता हमारा बच्चा है तो कोई कहता हमारा मुन्ना है। कभी-कभी बड़े लड़के छोटे बच्चों को मेरी पीठ पर बैठाकर कहते— ' मेरा लल्लू हाथी पर बैठा है।' भला मैं उन लड़कों का बोझ कैसे उठाता। जब चिल्लाने लगता, तो जान बचती। कभी-कभी लड़के मुझे एक तालाब में डाल देते और मेरी तैराकी का तमाशा देखते। जब मैं बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगता, तो लड़के हंस-हंसकर कहते—'देखो, कल्लू कैसे तैरता है।' क्या बतलाऊं कि उस समय कितना गुस्सा आता। बार-बार यह जी में आता था कि कोई इन दुष्टों को भी  इसी तरह डुबकियां देता, तो  इनकी आंखें खुलतीं।
हम दो भाइयों मेें सुखी तो कोई नहीं था परंतु जकिया की दशा मेरे से अच्छी थीं।  पंडित जी के यहां मुझे रूखा-सूखा भोजन मिलता था और वह भी बहुत कम। इसलिए मुझे दूसरों के द्वार पर भी चक्कर लगाना पड़ता था। परंतु जकिया को काफी भोजन मिल जाता था। उसे किसी दूसरे के यहां जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी।  पूरी खुराक मिलने के कारण वह ताकतवर और तंदुरुस्त बन गया था। कई बार भूख से तंग आकर जब मैं उसके द्वार पर जाता, तो वह मुझपर एेसे झपटता जैसे मैं उसका दुश्मन हूं। वह मुझ कमजोर को खूब काटता। मैं उससे लडऩे का प्रयास करता पर हार जाता। लोग उकसाते, तो मैं फिर झपटता, पर हर बार मुझे मुंह की खानी पड़ती।
रोज-रोज की जिल्लत से तंग आकर एक दिन मैं जान पर खेलकर जकिया से उलझ पड़ा। वह भी पूरे जोश से लडऩे लगा। संयोग से पंडित जी वहां पहुंच गए। उनके पहुंचते ही लोग कहने लगे— 'कल्लू भग्गू कुत्ता है, कभी जकिया का सामना नहीं कर सकता।' यह सुनकर पंडित जी का चेहरा फीका पड़ गया। यह देखकर मालिक की आन रखने के लिए मैं कुछ एेसे जीवट से लड़ा कि जकिया को छठी का दूध याद आ गया। यह देखकर मेरे मालिक का चेहरा खिल उठा था। इससे मुझे बहुत संतोष मिला।
जिस तालाब में बच्चे मुझे फेंककर खेलते थे, उसका गांव में बड़ा महत्व था। उसी तालाब में गांव के छोटे-बड़े सभी नहाते-धोते थे। एक बार गांव के कुछ लड़के उसमें तैर रहे थे। पंडित जी का छोटा लड़का भी वहां पहुंच गया। उसका पैर फिसला, तो वह पानी में डूबने लगा। लड़के उसे बचाने के लिए चिल्लाने लगे पर किसी की उसे निकालने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। संयोग से पंडित जी का बड़ा लड़का भी वहां आ गया। भाई को डूबते देखा, तो बचाने के लिए तालाब में कूद पड़ा। पर छोटे ने उसे कुछ एेसे पकड़ लिया कि वह भी डूबने लगा। मैं वहां आ पहुंचा और सारी बातें मेरी समझ में आ गई। मैं तुरंत पानी में कूद पड़ा और बालों से पकड़कर दोनों को किनारे पर घसीट लाया। उस दिन से पंडित जी मुझे जान से अधिक प्यार करने लगे। अब पंडित जी घर में जो कुछ लाते, उसमें अपने लड़कों की तरह मेरा भी हिस्सा लगाते।
एक बार गांव में कई जंगली सूअर आ गए। उनके उत्पात से सारे गांव में हाहाकार मच गया। वे जिस खेत में घुस जाते, उसे बरबाद कर देते। आखिर लोगों ने थाने में फरियाद की। थाने का सबसे बड़ा अफसर कई शिकारी कुत्तों को लेकर गांव में आ पहुंचा। गांव के सब आदमी तमाशा देखने के लिए के लिए जमा हो गए। जब मैं साहब के पास पहुंचा तो मेरी निगाह उन कुत्तों पर पड़ी जो साहब के साथ आए थे। वे सब एक वाहन में बैठे हुए थे जिसे साहब लोग जीप कहते थे। अपने उन भाग्यवान भाइयों को देखकर मैं गर्व से फूल उठा कि मेरी जाति में भी एेसे लोग हैं जो अफसर के साथ मोटर में बैठते हैं।
साहब बहादुर अपने कुत्तों के साथ वहां पहुंचे जहां सूअरों का अड्डा था। साहब के कुत्ते उन पर टूट पड़े। उनकी बहादुरी देखकर लोग वाह-वाह कर उठे। अब मेरे मन में भी उमंग उठी। सोचा एक दिन तो मरना ही है। क्यों न कछ एसा कर दिखाऊं कि इन कुत्तों को को भी पता चल जाए कि इस गांव में भी कोई वीर है।
इतने में एक सूअर आता दिखाई दिया। मैंने उसे मार गिराया। सबने मेरी तारीफ की। साहब भी खुश हुए। साहब ने पूछा— ''यह किसका कुत्ता है?
मंडित जी ने गर्व से अपना नाम बताया। साहब ने कहा— ''आपका कुत्ता बड़ा बहादुर है।'' बात पूरी भी न हो पाई थी कि अचानक एक सूअर निकला और साहब पर झपटा। यदि एक क्षण की भी देरी हो जाती, तो सूअर उन्हें मार डालता। साहब के हाथ में बंदूक था पर घबराहट में वह उसे चलाना भूल गए। मैंने देखा, मामला नाजुक है। मैंने पीछे से लपककर सूअर की टांग पकड़ ली। इतने में साहब संभल गए और उन्होंने सूअर को गोली मार दी। पर मरने से पहले वह मुझे बुरी तरह घायल कर गया। मैं बेहोश हो गया।
जब होश आया तो देखा, मैं रूई के गद्दे पर लेटा हूं। दो तीन लोग मेरी सेवा कर रहे हैं। फिर तो साहब के घर पर मुझे एेसी चीजें खाने को मिलीं जो मैंने सपने में भी न सोचा था। साहब मुझे अपने साथ घुमाने ले जाते। पर उनके साथ रहते हुए भी मुझे पंडित जी की बड़ी याद आती थी पर साहब ने मुझे अपने साथ रखने की जिद ठान ली थी। आखिर मैंने उनकी जान जो बचाई थी।
कुछ दिन रहने का बाद साहब अपनी मेम के साथ विदेश घूमने निकले। उन्होंने मुझे भी साथ ले लिया। हम लोग लगभग एक महीने तक जहाज पर रहे। यह लकड़ी का ऊंचा-सा मकान था। जहां तक निगाह जाती, ऊपर नीला आकाश दिखाई देता था, तो नीचे नीला पानी। मैं डर के मारे भौंकता ही रहता था।
एक रात बादल घिर आए। तेज हवाएं चलने लगीं। हमारा जहाज लहरों पर ऊपर-नीचे हो रहा था। सब डरे हुए थे। एेसी आंधी मेरे जीवन में एक बार पहले भी आई थी। तब गांव में सैकड़ों मकान गिरने से हजारों जानवर मारे गए थे। पर समुद्री आंधी तो बहुत भयानक थी। अचानक बिजली चली गई और पूरे जहाज पर अंधकार हो गया। एकाएक जहाज किसी चीज से टकराया। एक भयंकर आवाज हुई और लगा कि जहाज नीचे पानी में घुसता जा रहा है। मेरे साहब और मेमसाहब एक दूसरे से मिलकर रो रहे थे। उनके लिए मेरा कलेजा फटा जा रहा था। सोच रहा था कि कैसे उन्हें बचाऊं। मेरा वश चलता तो दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर समुद्र में कूद पड़ता।
तभी जहाज पूरी तरह से पानी में डूह गया। सभी तैरने का प्रयास करने लगे। कोई कहीं बहे जा रहा था तो कोई कहीं।  मुझे अपने साहब के लिए रोना आ रहा था।
तभी बिजली चमकी। उस रोशनी में मुझे अपने साहब और मेमसाहब तैरते दिखाई पड़े। हम साथ-साथ तैरने लगे। वे दोनों बेहोश थे और एक लकड़ी के एक तख्ते पर लेटे थे। मैं उस तख्ते को दिशा दे रहा था। कई घंटों तक तैरने के बाद मैं उनके साथ एक टापू पर पहुंचा। हम किनारे पर पहुंचे ही थे कि कुछ काले लोगों ने आकर हमें घेर लिया। थोड़ी ही देर में कुछ औरतें भी बाहर आ गईं। उन्होंने साहब और मेमसाहब को उलटा लिटा दिया। कोई उनका पेट दबाता था, तो कोई हाथ। मुझे लगा कि वे उन्हें मार रहे हैं। पर बाद में पता चला, वे तो उनके पेट से पानी निकाल रहे थे। उनके होश में आते ही सभी खुशी से नाचने-गाने लगे। उनका नाच देखकर मुझे हंसी आती थी।
पर कुछ ही समय में सब बदल गया। उन्होंने मेरे साहब और मेमसाहब को एक कमरे में बंद कर दिया। उन्हें खाने को कुछ नहीं दिया जाता था। मुझे कुछ नहीं कहा क्योंकि उनकी नजर में मैं एक अदना-सा जानवर था।
कुछ ही दिनों में मुझे पता चल गया कि वे तो मेरे मालिकों को मारने की तैयारी कर रहे हैं। मैंने निश्चय किया कि किसी भी कीमत पर उन्हें बचाऊंगा। मैं मौका पाकर किसी की रोटी उठाकर अपने मालिक के पास छोड़ आता था। भूख के कारण वे मेरे मुंह से रोटी निकालकर खाने को तैयार हो जाते थे।
कुछ ही दिनों में मैं वहां के रास्ते जान गया। एक रात मौका मिला, तो मैंने साहब के कपड़े खींचे। वह मेरा इशारा समझ गए। दरवाजे खिड़की के रास्ते वे मेरे साथ भाग चले। अब मैं आगे-आगे था और वे मेरे पीछे। थोड़ी देर में ही वहां के लोगों को पता चल गया कि साहब भाग रहे हैं। सब हल्ला मचाते हुए हमारे पीछे भागे। कुछ ही देर में हमने समझ लिया कि हमारा बचना मुश्किल है। तभी मुझे एक गुफा दिखाई दिया। साहब को मैंने खींचा, तो वह मेमसाहब के साथ उसमें घुस गए।
पर हमारी परेशानियों का अंत नहीं हुआ था। वह गुफा एक शेर का था और वह उसमें बैठा हुआ था। शेर को देखते ही वे दोनों बेहोश हो गए। डर तो मैं भी गया, पर यह देखकर कुछ हिम्मत बंधी कि शेर हमें देखकर भी उठा नहीं। वह चुपचाप मेरी तरफ देख रहा था। मैं डरते-डरते उस तक पहुंचा, तो देखा उसका दायां पैर बुरी तरह फूला हुआ था।
मैं साहब के होश में आने की राह देखने लगा। थोड़ी देर में उनको होश आया। मुझे शेर के पास बैठे देखकर उनकी हिम्मत बंधी। शेर ने उन्हें देखकर पूंछ को हिलाया। वह आगे बढ़े, तो शेर ने अपना पंजा आगे कर दिया। साहब ने देखा, वहां एक कांटा गड़ा था। साहब ने कांटे को निकाल दिया। शेर का दर्द जाता रहा।
तभी गुफा में जंगली लोग घुस आए। मैं आगे जाकर खड़ा हो गया कि लड़ मरूंगा पर साहब पर आंच न आने दूंगा। पर वे आगे बढऩे लगे।
तभी गुफा शेर की दहाड़ से गूंज उठा। सारे जंगली लोग दुम दबाकर भागने लगे। शेर ने एक को पकड़ लिया और देखते-देखते सारे लोग भाग खड़े हुए। एक घंटे बाद हम सब बाहर निकले। शेर सिर झुकाए हमारे आगे इस तरह चला जा रहा था, जैसे गाय हो। शाम होते-होते हम एक दूसरे जंगल में पहुंच गए।  वहां का रास्ता मैं तो जानता न था अत: अब शेर आगे-आगे चलने लगा और हम उसके पीछे पीछे चलने लगे। तभी एक आवाज सुनकर शेर ठिठक गया। उसके कान खड़े हो गए और वह गुर्राने लगा। सहसा सामने एक दूसरा शेर आ गया।
हम सब तो एक पेड़ के पीछ दुबक गए पर हमारा शेर नए शेर के सामने डटकर खड़ा हो गया जैसे कह रहा हो— 'अपनी जान बचाने वाले पर मैं आंच न आने दूंगा।''
पर दूसरा शेर गरजकर हमारी ओर चला। यह देखकर हमारा शेर उस पर टूट पड़ा। दोनों आपस में गुंथ गए। दोनो कभी पंजों से लड़ते तो कभी दांतों से। घंटे भर की लड़ाई के बाद हमारे शेर ने मैदान मार ही लिया। पर हमारे मित्र की हालत भी खराब हो गई थी।
दूसरे दिन हम लोग समुद्र के किनारे पहुंचे। वहां हमारे मित्र शेर ने दम तोड़ दिया। वह मर तो गया पर अपना कर्ज चुका गया। साहब उसके मरने पर खूब रोए। उनकी समझ में आ गया होगा कि अगर प्यार मिले तो हम जानवर आदमियों के मुकाबले ज्यादा वफादार होते हैं।
तभी किसी चीज के घरघराने की आवाज हमारे कानों में आई। हम सब ऊपर आसामन की ओर देखने लगे। मुझे आसमान में एक बड़ी-सी चील दिखाई दी। साहब ने अपनी टोपी उतारकर हवा में उछाली, मेमसाहब भी अपना रूमाल हवा में लहराने लगीं। मेरी समझ में नहीं आता था कि चील को देखकर इतना खुश होने की क्या जरूरत है?
तभी वह चील हमारी ओर आने लगी। देखते-देखते वह नीचे उतर आई। मैंने इतनी भीमकाय चिडिय़ा नहीं देखी थी। थोड़ी देर में उसमें से दो आदमी निकले। तब मुझे पता चला यह तो एक प्रकार की सवारी है जो लोगों को लेकर हवा में उड़ती है। उन्होंने मेरे साहब से कुछ बात की। फिर साहब ने मुझे गोद में उठा लिया। फिर हम सब उसी में बैठकर उड़ चले। हम पूरी रात उड़ते रहे। सब सो गए पर डर के मारे मैं जगा रहा कि कहीं यह गिर न पड़े। जब हम नीचे उतरे, तो दंग रह गया। इतनी मुश्किल यात्रा कर हम सब अपने पुराने घर पर ही लौट आए थे। उस यंत्र से उतरकर हम सब एक मोटर में बैठकर अपने बंगले की ओर चले।
घर पहुंचते ही मेरा तो आराम हराम हो गया। एक नौकर ने तुरंत मुझे नहलाया। फिर मुझे लाकर साहब के मुलाकाती कमरे में एक सोफा पर बैठा दिया। मेमसाहब अपने हाथों से मुझे खिलाने लगीं। खुशी के मारे मेरा जी चाहता था कि मेरी बिरादरी वाले आएं और मुझे देखें और मुझपर गर्व करें। मैं उनसे कहना चाहता था कि मैं आज भी वही कल्लू हूं, वही कमजोर, मरियल कल्लू। मगर मैंने अपने कर्तव्य-पालन में कभी चूक नहीं की। अवसर पडऩे पर खतरों का निडर होकर सामना किया। इसीलिए मैं आज इतना स्नेह और आदर पा रहा हूं। शहर के बड़े-बड़े लोग मुझे देखने आए मुझ पर फूलों की वर्षा की।
शाम को मुझे मौका मिला,तो मैं अपने जन्मस्थल की ओर भागा। मगर ज्योंही मैं गांव पहुंचा। कुत्तों के एक झुंड ने मुझपर आक्रमण कर दिया। मैं उन्हें बताना चाहता था कि मै उनकी मान बढ़ाने वाला कल्लू हूं। परंतु वे मुझपर आक्रमण करते ही जा रहे थे।
सौभाग्य से तभी मेरे पुराने स्वामी पंडित जी लाठी टेकते चले आए। उन्हें देखते ही जैसे मेरे बदन में शक्ति आ गई। मैं दौड़कर पंडित जी के पास पहुंचा और दुम हिलाने लगा। पंडित जी मुझे पहचान गए। उन्होंने प्यार से हाथ फेरकर कहा— ''तुम तो बड़े आदमी बन गए हो कल्लू। तुम्हारी तो अखबारों में भी तारीफ हो रही है।''
उनके साथ मैं घर पर पहुंचा। पंडिताइन ने भी मुझे बड़ा प्यार दिया मेरे आने की खबर सुनते ही सारा गांव इकट्ठा हो गया। सबने मुझे खूब प्यार दिया। फिर भरे मन से मैं बंगले पर पहुंचा,पर मेरा सिर गर्व से तना हुआ था।

                                                                                                                      प्रस्तुत : अनिल जायसवाल